वह उसे बेहद चाहती थी,
इसीलिए माफ़ कर न सकी।
जानते हुए भी कि,
उस रिश्ते की मौत निश्चित है,
साथ उसके इन्साफ कर न सकी।
इर्ष्या में जल जल कर,
हालात को बद से बदतर बनाती रही,
योजनाबद्ध तरीके से अपनी उल्फत का,
रेशा रेशा उखाड़ती रही।
वो उस कोरे कुहासे में,
उफक की रोशनियाँ खोजती रही,
खून से लिखे अल्फाजों को,
अपने ही खून से पोछती रही।
उस पुराने प्रेम को पा जाना चाहती थी,
उसे इस जहाँ से कहीं दूर,
किसी अनोखे क्षितिज पर,
पहुँच जाना चाहती थी।
लेकिन वो उसकी कुर्बत पा न सकी,
तो उसे उफनती लपटों में झोंक दिया,
जिस तलवार पे बाकी थे यादों के छींटे उसके,
उसे ख़ुद के सीने में भोंक दिया।
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